क्या भारतीय मीडिया फिर से निष्पक्ष बन सकता है, या यह पूरी तरह से राजनीतिक प्रचार का साधन बन चुका है?


भारतीय मीडिया का वर्तमान परिदृश्य बड़ी हद तक राजनीतिक और कॉरपोरेट प्रभाव में आ चुका है। मुख्यधारा के बड़े मीडिया हाउस या तो सरकार समर्थक बन गए हैं या किसी विशेष विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं। लेकिन क्या यह पूरी तरह से IT सेल में तब्दील हो चुका है, या अब भी इसमें सुधार की संभावना है? आइए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।


1️⃣ क्या भारतीय मीडिया पूरी तरह से राजनीतिक प्रचार का साधन बन चुका है?

मुख्यधारा की मीडिया (Mainstream Media) पर गहरा राजनीतिक प्रभाव

  • बड़े चैनल और अखबार सरकार के खिलाफ सवाल उठाने से बचते हैं।
  • सिर्फ उन्हीं खबरों को प्रमुखता दी जाती है, जो किसी खास राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं।
  • सरकार समर्थक मीडिया (Godi Media) अक्सर विपक्ष को बदनाम करने और सरकार की छवि चमकाने का काम करता है।

मीडिया का कॉरपोरेटाइजेशन और विज्ञापन का दबाव

  • बड़े मीडिया हाउस अब स्वतंत्र संस्थान नहीं रहे, बल्कि कॉरपोरेट मालिकों के अधीन आ चुके हैं।
  • सरकार और बड़ी कंपनियों के विज्ञापनों से मीडिया को फंडिंग मिलती है, इसलिए वे उनके खिलाफ खबरें नहीं चलाते।

फेक न्यूज और सोशल मीडिया ट्रोलिंग का असर

  • IT सेल द्वारा प्रायोजित फर्जी खबरें मुख्यधारा मीडिया में भी जगह बना लेती हैं।
  • सरकार समर्थक या विरोधी नैरेटिव सेट करने के लिए व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी, ट्रेंडिंग हैशटैग और भ्रामक वीडियो का सहारा लिया जाता है।

स्वतंत्र पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हमले

  • जो पत्रकार सच्चाई उजागर करने की कोशिश करते हैं, उन्हें डराया-धमकाया जाता है, झूठे मुकदमों में फंसाया जाता है, या उनके खिलाफ IT सेल को सक्रिय कर दिया जाता है।
  • कई स्वतंत्र पत्रकारों को सरकार विरोधी बताकर उनकी विश्वसनीयता पर हमला किया जाता है।

📌 निष्कर्ष:
मुख्यधारा का बड़ा हिस्सा अब पूरी तरह से प्रचार तंत्र का हिस्सा बन चुका है।
लोकतंत्र में मीडिया की जो स्वतंत्र भूमिका होनी चाहिए, वह काफी कमजोर हो चुकी है।
सिर्फ गिने-चुने पत्रकार और छोटे स्वतंत्र मीडिया प्लेटफॉर्म ही निष्पक्ष पत्रकारिता करने की कोशिश कर रहे हैं।


2️⃣ क्या भारतीय मीडिया फिर से निष्पक्ष बन सकता है?

मीडिया की निष्पक्षता को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बदलाव जरूरी हैं:

(A) मीडिया की आर्थिक स्वतंत्रता

सरकारी विज्ञापनों पर निर्भरता खत्म करनी होगी।
स्वतंत्र मीडिया को जनता और छोटे निवेशकों से फंडिंग मिलनी चाहिए।
कोऑपरेटिव मीडिया मॉडल अपनाया जा सकता है, जहां पत्रकारिता को सिर्फ व्यावसायिक लाभ के नजरिए से न देखा जाए।

(B) वैकल्पिक मीडिया (Alternative Media) का उदय

नए डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म और स्वतंत्र पत्रकारिता संस्थानों को बढ़ावा देना होगा।
YouTube, ब्लॉगिंग, पॉडकास्ट और स्वतंत्र न्यूज़ पोर्टल्स के जरिए निष्पक्ष खबरें पहुंचाने का विकल्प तलाशना होगा।
जनता को चाहिए कि वह बड़े मीडिया हाउस की जगह छोटे, लेकिन निष्पक्ष न्यूज प्लेटफॉर्म को सपोर्ट करे।

(C) मीडिया नियमन और जवाबदेही

मीडिया संस्थानों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कोई स्वतंत्र नियामक संस्था होनी चाहिए।
प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कड़े कानून बनने चाहिए, ताकि सरकारें या कॉरपोरेट मीडिया को दबाव में न लें।
फर्जी खबरें फैलाने वाले मीडिया संस्थानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

(D) जनता की भूमिका: मीडिया को जवाबदेह बनाना

TRP-ड्रिवन न्यूज देखने और भड़काऊ चैनलों का समर्थन बंद करना होगा।
फैक्ट-चेकिंग की आदत डालनी होगी, ताकि फेक न्यूज और प्रोपेगेंडा से बचा जा सके।
स्वतंत्र मीडिया और पत्रकारों को आर्थिक और नैतिक समर्थन देना होगा।


3️⃣ निष्कर्ष: क्या भारतीय मीडिया निष्पक्ष हो सकता है?

अभी मुख्यधारा मीडिया का बड़ा हिस्सा पूरी तरह से राजनीतिक प्रचार का माध्यम बन चुका है। लेकिन यह स्थिति बदल सकती है अगर:
स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा दिया जाए।
जनता जागरूक होकर प्रोपेगेंडा मीडिया का बहिष्कार करे।
मीडिया को आर्थिक रूप से स्वायत्त बनाया जाए।
डिजिटल और वैकल्पिक मीडिया को मुख्यधारा मीडिया के समान महत्व दिया जाए।

संभावना खत्म नहीं हुई है, लेकिन बदलाव जनता के समर्थन और मीडिया की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। अगर लोग निष्पक्ष खबरों की मांग करेंगे और सिर्फ सनसनीखेज खबरों पर ध्यान नहीं देंगे, तो मीडिया को भी अपनी दिशा बदलनी होगी।


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